खूब सूरत गुनाह कर बैठे ।
हुस्न पर वो निगाह कर बैठे ।।
आप गुजरे गली से जब उनकी ।
सारी बस्ती तबाह कर बैठे ।।
कुछ असर हो गया जमाने का ।
ज़ुल्फ़ वो भी सियाह कर बैठे ।।
देख कर जो गए थे गुलशन को ।
आज फूलों की चाह कर बैठे ।।
जख्म दिल का अभी हरा है क्या ।
आप फिर क्यों कराह कर बैठे ।।
किस तरह से जलाएं मेरा घर ।
लोग मुझसे सलाह कर बैठे ।।
लोग नफरत की इस सियासत में ।
आपको बादशाह कर बैठे ।।
दुश्मनी जब चले निभाने हम ।
वो हमें खैरख्वाह कर बैठे ।।
उस जमीं का उदास मंजर था ।
हम जिसे ईदगाह कर बैठे ।।
वो तो सरकार की सियासत थी ।
आप क्यूँ आत्मदाह कर बैठे ।।
अब तस्सल्ली उन्हें मुबारक़ हो ।
मुल्क जो कत्लगाह कर बैठे ।।
उन शहीदों को है सलाम मेरा ।
मौत से जो निक़ाह कर बैठे ।।
सिर्फ पहुँचे वही खुदा तक हैं ।
इश्क़ जो बेपनाह कर बैठे ।।
-डॉ.नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बहुत उम्दा शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आ0 अनिता जी
ReplyDeleteशास्त्री जी , नासवा जी , जोशी जी यशोदा जी । आप सब को सादर नमन के साथ आभार ।
ग़ज़ल के एक एक शेर लाजवाब हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शेर वाह
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल
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