Monday, March 18, 2019

अभी न होगा मेरा अन्त....पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

अभी न होगा मेरा अन्त 

अभी-अभी ही तो आया है 
मेरे वन में मृदुल वसन्त- 
अभी न होगा मेरा अन्त 

हरे-हरे ये पात, 
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! 

मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर 
फेरूँगा निद्रित कलियों पर 
जगा एक प्रत्यूष मनोहर 

पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, 
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, 

द्वार दिखा दूँगा फिर उनको 
है मेरे वे जहाँ अनन्त- 
अभी न होगा मेरा अन्त। 

मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, 
इसमें कहाँ मृत्यु? 
है जीवन ही जीवन 
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन 
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, 

मेरे ही अविकसित राग से 
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त; 
अभी न होगा मेरा अन्त।

- पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-03-2019) को "मन के मृदु उद्गार" (चर्चा अंक-3279) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह.. बहुत सुंदर। सादर।

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  3. साझा करने के लिए धन्यवाद, आदरणीया.
    अब जाकर मानो, वास्तव में वसंत आ ही गया.

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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