मैं और अश्रु
इसके अलावा
ना था कोई और
हम दोनों थे
एकांत था
बहुत खुश थे
स्पर्श का अहसास था
गुफ्तगू की हमने
कहा हमने उनसे
क्यों चले आते हो हरदम
क्या करूं ?
तुम्हें महसूस करते हैं
लगता है जब तुम अकेले हो
हम दौड़े चले आते हैं
हमें तुम्हारी आदत-सी हो गई
हमारे आने के बाद
हल्केपन का अहसास होता है
दिल का भार अश्रु संग बहाते हैं
इसलिए हम चले आते हैं।
अश्रुओं की व्यथा...
है ना स्वप्न...!
- सपना पारीक 'स्वप्न'
सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.3.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3288 ,में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुन्दर...
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