दुःख,व्यथा,क्षोभ ही नहीं भरा
बस विरह, क्रोध ही नहीं धरा
मकरंद मधुर उर भीत सुनो
जीवन का छम-छम गीत सुनो
ज्वाला में जल मिट जाओगे
गत मरीचिका आज लुटाओगे
बनकर मधुप चख लो पराग
कुछ क्षण का सुरभित रंग-राग
अंबर से झरता स्नेहप्रीत सुनो
कल-कल प्रकृति का गीत सुनो
क्यूँ उर इतना अवसाद भरा?
क्यूँ तम का गहरा गाद भरा?
लाली उषा की,पवन का शोर
छलके स्वप्न दृग अंजन कोर
घन घूँघट चाँदनी शीत सुनो
टिम-टिम तारों का गीत सुनो
इस सुंदर जीवन से विरक्ति क्यों?
कड़वी इतनी अभिव्यक्ति क्यों?
मन अवगुंठन,हिय पट खोलो तुम
खग,तितली,भँवर संग बोलो तुम
न मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
प्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो
-श्वेता सिन्हा
पन्त जी की शिष्या फिर से हमको प्रकृति की गोद में ले चली है.
ReplyDeleteअच्छा है ! थोड़े समय के लिए ही सही, हम जीवन की आपा-धापी भूल जाएंगे.
अब सुन लो डमरू शंकर की
ReplyDeleteये है बारात प्रलयकर की।
शिव ने शक्ति समेटी है
अपनी जटा लपेटी है।
चित और आनंद मिलेंगे
कैलाश में किसलय खिलेंगे।
सृष्टि का होगा स्पंदन
कल्प नया, करो अभिनन्दन।
नव चेतन का चिन्मय गीत सुनो
शिवरात्रि का संगीत सुनो।
अलख निरंजन !
Deleteवाह !श्वेता जी बेहतरीन 👌
ReplyDeleteसादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-03-2019) को "पथरीला पथ अपनाया है" (चर्चा अंक-3265) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह
ReplyDeleteन मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
ReplyDeleteप्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो
लाजबाब बहुत खूब.......
रुनझुन नूपुर छनक उठे
ReplyDeleteपुलकित मन का संगीत सुनो !