जिंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी काफ़िला है मुझे
तू महोब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौंसला है मुझे
लब कुशा हूं तो इस यकिन के साथ
क़त्ल होने का हौंसला है मुझे
दिल धड़कता नहीं सुलगता है
वो जो ख्वाहिश थी,आबला है मुझे
-अहमद फ़राज़
कौन जाने कि चाहतो में फराज़
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे -अहमद फ़राज़
काफी उम्दा रचना....बधाई...
ReplyDeleteनयी रचना
"सफर"
आभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2014) को "कैसे नवअंकुर उपजाऊँ..?" (चर्चा मंच-1508) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह !
ReplyDeletebhut khoob .....
ReplyDeleteलाजबाब रचना.
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन प्रस्तुति
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