* फ़स्ले-गुल *
हर घड़ी कयामत थी, ये न पूछ कब गुज़री
बस यी गनीमत है, तेरे बाद शब गुज़री
कुंजे-गम में एक गुल भी न खिल सका पूरा
इस बला की तेज़ी से सरसरे-तरब गुज़री
तेरे गम की खुशबू से ज़िस्मों-ज़ां महक उट्ठे
सांस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुजरी
एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम-तुम
धूप और छांव की दोस्ती अज़ब गुजरी
जाने क्या हुआ हमको अब के फ़स्ले-गुल में भी
बर्गे-दिल नहीं लरज़ा, तेरी याद जब गुज़री
बेक़रार, बेकल है ज़ां सुकूं के सहरा में
आज तक न देखी थी ये घड़ी जो अब गुजरी
बादे-तर्के-उलफ़त भी यूं न जिए, लेकिन
वक़्त बेतरह बीता,उम्र बेसबब गुज़री
किस तरह तराशोगे, तुहमते-हवस हमपर
ज़िन्दगी हमारी तो सारी बेतलब गुज़री
सरसरे-तरबः आनंद की हवा, फ़स्ले-गुलः वसंत ऋतु,
बर्गे-दिलः दिल का पता, बादे-तर्के-उलफ़तः प्रेम विच्छेदन का पश्चात,
बस यी गनीमत है, तेरे बाद शब गुज़री
कुंजे-गम में एक गुल भी न खिल सका पूरा
इस बला की तेज़ी से सरसरे-तरब गुज़री
तेरे गम की खुशबू से ज़िस्मों-ज़ां महक उट्ठे
सांस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुजरी
एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम-तुम
धूप और छांव की दोस्ती अज़ब गुजरी
जाने क्या हुआ हमको अब के फ़स्ले-गुल में भी
बर्गे-दिल नहीं लरज़ा, तेरी याद जब गुज़री
बेक़रार, बेकल है ज़ां सुकूं के सहरा में
आज तक न देखी थी ये घड़ी जो अब गुजरी
बादे-तर्के-उलफ़त भी यूं न जिए, लेकिन
वक़्त बेतरह बीता,उम्र बेसबब गुज़री
किस तरह तराशोगे, तुहमते-हवस हमपर
ज़िन्दगी हमारी तो सारी बेतलब गुज़री
सरसरे-तरबः आनंद की हवा, फ़स्ले-गुलः वसंत ऋतु,
बर्गे-दिलः दिल का पता, बादे-तर्के-उलफ़तः प्रेम विच्छेदन का पश्चात,
तुहमते-हवसः लोलुपता का आरोप
-ज़हूर नज़र
जन्मः 22 अगस्त, 1923, मिंटगुमटी, साहीवाल
-ज़हूर नज़र
जन्मः 22 अगस्त, 1923, मिंटगुमटी, साहीवाल
खूबशूरत,बेहतरीन प्रस्तुति...!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार ,,,,
RECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआप सभी लोगो का मैं अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप सभी मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
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उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteSHAANDAAR RACHNA..
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