ख़ला को छू के आना चाहता हूँ
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
मेरी ख़्वाहिश तुझे पाना नहीं है
ज़रा सा हक़ जताना चाहता हूँ
तुझे ये जान कर हैरत तो होगी
मैं अब भी मुस्कुराना चाहता हूँ
तेरे हंसने की इक आवाज़ सुन कर
तेरी महफ़िल में आना चाहता हूँ
मेरी ख़ामोशियों की बात सुन लो
ख़मोशी से बताना चाहता हूँ
बहुत तब्दीलियाँ करनी हैं ख़ुद में
नया किरदार पाना चाहता हूं.....!!
-प्रखर मालवीय`कान्हा’
बहुत दुन्दर..
ReplyDeletePrakhar ji ...bahut sundar...khamoshiyon ko juban di hai...
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