Saturday, January 11, 2014

हर दहलीज़ दर्द कई समेटे होता है..............आशा गुप्ता 'आशु'



अब तुम कहते हो तो
सब सुनती हूँ बस सुनती हूं
उसी तरह जैसे पत्थरों पर गिरती है बूंदे
और सरक कर परे हो जाती हैं





एक आकार जो ...
अब बदलता ही नहीं
नहीं गढ़ता कोई मूरत और न कहानियां
ना कोई संवेदन और ना ही कोई आहट
तुमने अपने लिए अब
कितने नाम चुन लिए हैं
नादानी, बेवकूफी, पागलपन
और भी ना जाने क्या -क्या
और शब्द सिर्फ एक 'माफी'
समझदारी का ताज़ पहनाये
जो तुमने मुझे
कभी उसके पीछे की
कसमसाहट भी देखी होती
और जाना होता कि
हर चुप हज़ार दास्तानों में कैद होता है
हर दहलीज़ दर्द कई समेटे होता है
सुना तुमने....सुना श्वेताम्बरा ने.... ...


-आशा गुप्ता 'आशु'

मेरी नई फेसबुक मित्र
मेरी नई सखी....

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