मैंनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूं।
चिड़िया ने मुझसे पूछा, "तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है ?"
मैंनें कहा, 'नहीं'
"तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?"
'नहीं'
"तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?"
'नहीं'
"जान है?"
'नहीं'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे!'
मैंनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली,
'प्यार से शब्दों क्या सरोकार है.'
एक अनुभव हुआ नया.
मैं मौन हो गया!
-हरिवंशराय बच्चन
आज की मधुरिमा में प्रकाशित रचना
बहुत सुन्दर....
ReplyDeletenice
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसिर्फ अहसास ही तो होता है प्यार...फिर शब्दों की क्या ज़रूरत...
ReplyDeleteबेहतरीन कविता...आभार!!
सादर,
सारिका मुकेश
बहुत सुन्दर
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