इस से पहले की बेवफ़ा हो जाएँ
क्यूं न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी जाने क्या से क्या हो जाएँ
हम भी मजबूरियों का उज्र करें
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ
अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
ऐसे लिपटे तेरी क़बा हो जाएँ
बंदगी हमने छोड़ दी फराज़
क्या करे लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
-अहमद फ़राज़
बहुत खूब ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया...
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार आपका।
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