मैं अपने दिल में तेरी याद का सैलाब रखता हूँ
और इस तलवार से पर्वत का सीना चीर सकता हूँ
कई फूलों से चेहरे आ गये मेरी इबादत में
निगाहों में बहारों का मैं वो एहसास रखता हूँ
तिरी आँखों की गहराई का अंदाज़ा न था मुझको
मगर ये शक़ तो था शायद कभी मैं डूब सकता हूँ
मुझे ख़ामोशियों में ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी अब
मैं इस दरजा किसी भी बात को कहने से डरता हूँ
तिरे जाने से क्या बदला मिरी दुनिया में मेरी जाँ
उसी शिद्दत से तुझको रोज़ मैं महसूस करता हूँ
हमेशा फ़ोन करके पूछता हूँ ” कैसी हो तुम अब “
वही इक बात सुन कर बोलता हूँ ” अब मैं रखता हूँ “
तुम अपने फ़ैसले को ठीक अब भी मानती हो क्या
मिरा क्या है कि मैं इस आग में हर रोज़ जलता हूँ
भरी है डायरी मेरी फ़क़त तेरी कहानी से
अक़ीदत से तिरी यादों को मैं हर रोज़ पढता हूँ
तिरी तस्वीर सीने से लगा रक्खी है, सिगरट है
यही वो ढंग है जिससे तुझे मैं दूर रखता हूँ
सवालों का यही उत्तर है दिल के पास मुद्दत से
बहुत अच्छा हूँ दीवाने धड़कना था धड़कता हूँ
सदा मेरी मुझी तक आ नहीं पायी मगर जानां
न जाने क्यूँ मुझे लगता है मैं भी चीख़ सकता हूँ
किया जिसने भी अपनी ज़िन्दगी को आशिक़ी के नाम
मैं उस हर एक शायर की किताबों में महकता हूँ
मुझे रिश्तों के भोलेपन पे इस दरजा भरोसा है
कोई गर बात इनकी छेड़ दे तो चुप ही रहता हूँ
तेरी गलियों के चुम्बक से ये मेरे पाँव चिपके हैं
मुझे कैसे भरोसा हो कि हाँ मैं चल भी सकता हूँ
दिनेश नायडू 09303985412
और इस तलवार से पर्वत का सीना चीर सकता हूँ
कई फूलों से चेहरे आ गये मेरी इबादत में
निगाहों में बहारों का मैं वो एहसास रखता हूँ
तिरी आँखों की गहराई का अंदाज़ा न था मुझको
मगर ये शक़ तो था शायद कभी मैं डूब सकता हूँ
मुझे ख़ामोशियों में ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी अब
मैं इस दरजा किसी भी बात को कहने से डरता हूँ
तिरे जाने से क्या बदला मिरी दुनिया में मेरी जाँ
उसी शिद्दत से तुझको रोज़ मैं महसूस करता हूँ
हमेशा फ़ोन करके पूछता हूँ ” कैसी हो तुम अब “
वही इक बात सुन कर बोलता हूँ ” अब मैं रखता हूँ “
तुम अपने फ़ैसले को ठीक अब भी मानती हो क्या
मिरा क्या है कि मैं इस आग में हर रोज़ जलता हूँ
भरी है डायरी मेरी फ़क़त तेरी कहानी से
अक़ीदत से तिरी यादों को मैं हर रोज़ पढता हूँ
तिरी तस्वीर सीने से लगा रक्खी है, सिगरट है
यही वो ढंग है जिससे तुझे मैं दूर रखता हूँ
सवालों का यही उत्तर है दिल के पास मुद्दत से
बहुत अच्छा हूँ दीवाने धड़कना था धड़कता हूँ
सदा मेरी मुझी तक आ नहीं पायी मगर जानां
न जाने क्यूँ मुझे लगता है मैं भी चीख़ सकता हूँ
किया जिसने भी अपनी ज़िन्दगी को आशिक़ी के नाम
मैं उस हर एक शायर की किताबों में महकता हूँ
मुझे रिश्तों के भोलेपन पे इस दरजा भरोसा है
कोई गर बात इनकी छेड़ दे तो चुप ही रहता हूँ
तेरी गलियों के चुम्बक से ये मेरे पाँव चिपके हैं
मुझे कैसे भरोसा हो कि हाँ मैं चल भी सकता हूँ
दिनेश नायडू 09303985412
वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteकाफी उम्दा रचना....बधाई...
ReplyDeleteनयी रचना
"अनसुलझी पहेली"
आभार
sundarta bhari rachna ------!
ReplyDeleteवाह...बहुत बढ़िया रचना....आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो
काफी उम्दा .....
ReplyDeletepathniy rachnaa
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