तिरी अना ने सलीक़े से जो निकाला है
वो मेरे रुख़ पे मिरे दर्द का रिसाला है
कहूं या छोड़ूं ज़बां पर जो आने वाला है
जी..वो..मैं..हां..कि ये मौसम बदलने वाला है
वो इक चराग़ जिसे ख़ून देके पाला है
सितम ये क्या कि हवा का वही निवाला है
तिरी तलाश में दिन-भर भटक के लौट आया
हुई है शाम तो खुद में उतरने वाला है
तुम्हारे जि़क्र की माचिस किसी ने दिखला दी
लो फिर से याद का जंगल सुलगने वाला है
तिरी तलाश में शोलों पे दौड़े हैं दिन-रात
ये मेरे पांव जिन्हें चांदनी ने पाला है
तिरे ख़याल से फुरसत मिले तो ग़ौर करूं
‘अंधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है’
जहां से ख़ाब के पंछी उड़ान भरते थे
उसी शजर को हक़ीक़त ने काट डाला है
बहुत अज़ीज़ मुझे है मगर ये छूटेगा
मिरा ये जिस्म मिरी रूह का दुशाला है
हटो यहां से कि मलबे में दब न जाओ कहीं
खंडर ये दिल का ज़मींदोज़ होने वाला है
ये क्यों कहा कि तुझे रोज़ याद आऊंगा
कहीं ये सच तो नहीं तू बिछड़ने वाला है
बताते रहते हो खिड़की का जिसको तुम परदा
तुम्हारी दीद पे क़ाबिज़ मियां वो जाला है
बगैर ‘शिव’ के है आबाद शह्र लोहे का
बग़ैर शिव के कहां शह्र ये बटाला है *
मिलेगा तर्के-तअल्लुक़ से क्या उसे ‘नवनीत’
जो मुझपे बीता है उस पर गुज़रने वाला है
(विरह को सुल्तान मानने वाले
वो मेरे रुख़ पे मिरे दर्द का रिसाला है
कहूं या छोड़ूं ज़बां पर जो आने वाला है
जी..वो..मैं..हां..कि ये मौसम बदलने वाला है
वो इक चराग़ जिसे ख़ून देके पाला है
सितम ये क्या कि हवा का वही निवाला है
तिरी तलाश में दिन-भर भटक के लौट आया
हुई है शाम तो खुद में उतरने वाला है
तुम्हारे जि़क्र की माचिस किसी ने दिखला दी
लो फिर से याद का जंगल सुलगने वाला है
तिरी तलाश में शोलों पे दौड़े हैं दिन-रात
ये मेरे पांव जिन्हें चांदनी ने पाला है
तिरे ख़याल से फुरसत मिले तो ग़ौर करूं
‘अंधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है’
जहां से ख़ाब के पंछी उड़ान भरते थे
उसी शजर को हक़ीक़त ने काट डाला है
बहुत अज़ीज़ मुझे है मगर ये छूटेगा
मिरा ये जिस्म मिरी रूह का दुशाला है
हटो यहां से कि मलबे में दब न जाओ कहीं
खंडर ये दिल का ज़मींदोज़ होने वाला है
ये क्यों कहा कि तुझे रोज़ याद आऊंगा
कहीं ये सच तो नहीं तू बिछड़ने वाला है
बताते रहते हो खिड़की का जिसको तुम परदा
तुम्हारी दीद पे क़ाबिज़ मियां वो जाला है
बगैर ‘शिव’ के है आबाद शह्र लोहे का
बग़ैर शिव के कहां शह्र ये बटाला है *
मिलेगा तर्के-तअल्लुक़ से क्या उसे ‘नवनीत’
जो मुझपे बीता है उस पर गुज़रने वाला है
(विरह को सुल्तान मानने वाले
दिवंगत पंजाबी शायर शिव बटालवी के लिए )
नवनीत शर्मा
नवनीत शर्मा
09418040160
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteतिरे ख़याल से फुरसत मिले तो ग़ौर करूं
ReplyDelete‘अंधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है’
हर एक याद शबे-ग़म में जगमगाती है
‘अंधेरा है, कि तेरे हिज्र में उजाला है’
गज़ल को स्नेह और सम्मान देने के लिए आभारी हूं। धन्यवाद।
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