तुम अपना चेहरा जो इन हाथों को थमा देते
तो इस पे बोसों की हम झालरें लगा देते
पलट के देखने भर से तो जी नहीं भरता
ये और करते कि थोड़ा सा मुस्कुरा देते
ये चाँद क्या है सितारे हैं क्या, जो कहते तुम
तुम्हारे क़दमों में हम कहकशां बिछा देते
तुम्हारे साथ उतर जाते हम भी बचपन में
तुम इस बदन को ज़रा सा जो गुदगुदा देते
तुम्हारे साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी बाँटी
बस अपने साथ ही रहते तो सब को क्या देते
कहा तो होता कि तुम धूप से परेशां हो
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते
यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना
वगरना किसलिये शोलों को हम हवा देते
हमारा सूर्य न होना हमारे हक़ में रहा
न जाने कितने परिंदों के पर जला देते
- नवीन सी. चतुर्वेदी
http://wp.me/p2hxFs-1Bi
तो इस पे बोसों की हम झालरें लगा देते
पलट के देखने भर से तो जी नहीं भरता
ये और करते कि थोड़ा सा मुस्कुरा देते
ये चाँद क्या है सितारे हैं क्या, जो कहते तुम
तुम्हारे क़दमों में हम कहकशां बिछा देते
तुम्हारे साथ उतर जाते हम भी बचपन में
तुम इस बदन को ज़रा सा जो गुदगुदा देते
तुम्हारे साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी बाँटी
बस अपने साथ ही रहते तो सब को क्या देते
कहा तो होता कि तुम धूप से परेशां हो
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते
यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना
वगरना किसलिये शोलों को हम हवा देते
हमारा सूर्य न होना हमारे हक़ में रहा
न जाने कितने परिंदों के पर जला देते
- नवीन सी. चतुर्वेदी
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बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा...
ReplyDeleteReally mind blowing .........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (09-01-2014) को चर्चा-1487 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ख़ूबसूरत.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल !
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा