'फ़लसफ़ा प्रकृति का'..................शोभा रतूड़ी
बहारों में शाखों के पत्ते,
साँसों को रखते जवाँ,....
पतझर में झरते पत्ते,
ढलते मौसम को
करते बयाँ……!
मुरझाती टहनी का
एक पीला पत्ता....
जिंदगी की बगिया से
दरकिनार होता....
मौसम-ए-पतझर में
कैसे गुलज़ार रहता ?
ढलती हुई साँझ का
यही है.... फ़लसफ़ा....
दिए की टिमटिमाती लौ से
जैसे छँटता....
शाम का धुँधलका…!
-शोभा रतूड़ी
सुंदर ....
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर.....
ReplyDeletebahut acchi rachana
ReplyDeleteसुन्दर अनुभूति की अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
बहुत सुंदर.....
ReplyDeleteढलती हुई साँझ का
ReplyDeleteयही है.... फ़लसफ़ा....
दिए की टिमटिमाती लौ से
जैसे छँटता....
शाम का धुँधलका…!
..बहुत सही कहा आपने ..यही दस्तूर है ...
मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !