Monday, September 30, 2019

मैं नारी हूँ....सरस दरबारी

मुझे गर्व है की मैं एक औरत हूँ ....
अपने घर की धुरी ....



दिन की पहली घंटी आवाहन करती है मेरा -

महरी आयी है ...
"अरे सुनती हो ...चाय ले आओ "
पतिदेव की बेड टी ..
"बहू नाश्ता ..ठीक ८ बजकर २० मिनिट पर चाहिए "
"माँ...टिफ़िन...स्कूल को देर हो रही है "
"अरे सुनो ऑफिस का समय हो रहा है "
"बीबीजी ...दूध ले लीजिये .."
"सब्जीईईइ........."
सब्ज़ीवाले की पुकार !
इस बीच थोड़े थोड़े अंतराल पर बजती टेलेफोन की घंटी ..



"बहू खाना तैयार है ....?"

"माँ भूख लगी "....स्कूल से लौटे बच्चे
"क्यों चाय नहीं पिलाओगी "
...दफ्तर से लौटे पतिदेव



"रात के खाने में क्या है "

"बहू खाना लगाओ "
"सुनो थोड़ी देर मेरे पास भी बैठ जाओ "
"माँ भूख लगी है "
चौका समेटा-
दिन ख़त्म...!!!



१० हाथ हैं मेरे ....

क्या यह पुरुषों के लिए संभव है ....?
तभी तो कहती हूँ
अपने घर की धुरी हूँ मैं ...!!!!!



प.स.  बीमार पड़ने की तो कहीं गुंजाइश ही नहीं....!!





4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01-10-2019) को     "तपे पीड़ा  के पाँव"   (चर्चा अंक- 3475)  पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह बहुत खूब।
    सार्थक प्रस्तुति।

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  3. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

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