Sunday, September 29, 2019

कमी न तुममें थी न मुझमें थी ...रश्मि प्रभा

कमी न तुममें थी
न मुझमें थी,
और शायद कमी तुझमें भी थी,
मुझमें भी थी ...
कटु शब्द तुमने भी कहे,
हमने भी कहे,
मेरी नज़रों से तुम गलत थे,
तुम्हारी नज़रों से हम !
बना रहा एक फासला,
न तुम झुके,
न हम - 
शिकायतें दूर भी हों तो कैसे ?
आओ, चुपचाप ही सही,
कुछ दूर साथ चलें,
मुमकिन है थकान भरे पल में,
तुम मुझे पानी दो
मैं तुम्हें ...
बिना किसी जीत-हार के,
बातों का एक सिलसिला शुरू हो जाए ।

-रश्मि प्रभा 


3 comments:

  1. "मुमकिन है थकान भरे पल में,
    तुम मुझे पानी दो
    मैं तुम्हें ..."
    अनगिनत आम रिश्ते इसी सिद्धान्त के समझौते पर पनप रहे ... जीवन के गूढ़ को समाहित करती सारगर्भित रचना ...

    ReplyDelete