Friday, September 27, 2019

शर्तों पर ज़िंदगी....अनुराधा चौहान


शर्तों के धागों में
उलझती जाती ज़िंदगी
चाहे -अनचाहे पलों को
जीने को मजबूर
बालपन से ही
 टाँक दी जाती है
जीवन जीने की शर्तें 
हर बेटियों के दामन में
ज़िंदगी की आजादी है
 सिर्फ दूसरों के लिए
जो नहीं मानती 
शर्तों से परे हटकर
ज़िंदगी जीती हैं आजादी से
अपने तौर-तरीके से
बहुत मुश्किल होता है
पर हार नहीं मानती
वह अलंकृत होती 
कई नामों से पर फिर भी
अपना वजूद को 
कायम रखकर
अपना लोहा मनवा लेती
शर्तों के दायरे में जीने वाली
घर की चारदीवारी  
सिमट कर रह जाती 
ज़िंदगी भर रिश्तों को
 रखती सहेजकर
लड़कर-झगड़कर 
तो कभी प्यार से
रिश्तों के बीच 
खुशियाँ तलाशती
माँ-बहन तो कभी बेटी
 बनकर शर्तें निभाती
और अपने स्वप्न दबा लेती
परिवार की खुशियों तले !!

-- अनुराधा चौहान

6 comments:

  1. सटीक सृजन ,शर्तों पर जिंदगी जीते है
    कभी अपनी शर्तें हो तो क्या बात

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-09-2019) को " आज जन्मदिन पर भगत के " (चर्चा अंक- 3472) पर भी होगी।


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  3. माँ-बहन तो कभी बेटी
    बनकर शर्तें निभाती
    और अपने स्वप्न दबा लेती
    परिवार की खुशियों तले


    बहुत खूब ,सादर

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  4. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. उलझती जाती ज़िंदगी
    चाहे -अनचाहे पलों को
    जीने को मजबूर

    ye aaj ki aadhuniktaa ki zindgi bhi darshaati he aur ik istri ki manodshaa bhi

    hum sab uljhe huye roshton ke stah jine ko mazboor ho ke reh gye hain

    baahr muskuraate aur man ke bheetar sab kasmksaate hain

    saarthak aur sateek rchnaa ...
    bdhaayi

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  6. शर्तों के धागों में
    उलझती जाती ज़िंदगी
    रचना की शुरुआत ही रचना की आत्मा है, किसी गाना के मुखड़ा के तरह ... नारी पक्ष को रूबरू करती रचना ...

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