वर्षो से जलती रही हथेलियाँ
माँ की
सेंकते- सेंकते रोटियां
मेरे पहले स्कूल से लेकर आखरी कॉलेज तक
सब याद है मुझे आज तक
बड़ी सी नौकरी और मिल गया
बड़ा सा घर
जिसे पाने के लिए सारी -२ रात लिखे पन्ने
अनजानी काली स्याही से
पर सब कुछ होने पर
नहीं भूलती
माँ की जलती हथेलियाँ....!!
- संजय भास्कर
भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसंजय भाई, दिल को छुती बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteमाँ की जलती हथेलियों को कभी भूलना भी नहीं चाहिए ,बहुत ही प्यारी रचना संजय जी
ReplyDeleteवाह हृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteमाँ की जलती हथेलियों ने
ReplyDeleteमेरी किस्मत की लकीरों को संवारा
अब मुझे इनके फफोलों पर
सेवा का मरहम है लगाना.
हामिद की दादी याद आ गई.
छोटी-सी प्यारी कविता,संजयजी.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.9.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3470 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवर्षो से जलती रही हथेलियाँ
ReplyDeleteमाँ की
सेंकते- सेंकते रोटियां
मेरे पहले स्कूल से लेकर आखरी कॉलेज तक
बहुत ही लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन....
वाह!!!