Monday, September 9, 2019

कौशल शुक्ला


मैंने पत्थर में भी फूलों सी नज़ाकत देखी
पिस के सीमेंट बने, ऐसी शराफ़त देखी

थी तेज हवा, उनका आँचल गिरा गई
इस शहर ने उस रोज क़यामत देखी

'मर्ज कैसा भी हो, दो दिन में चला जायेगा'
तुमनें दीवार पर लिखी वो इबारत देखी?

क्या बेमिसाल जश्न मनाया था गए साल
उस विधायक की बड़ी जीत की दावत देखी?

अब एम ए भी भरा करते हैं चपरासियों के फार्म
हमारे देश में रोजगार की किल्लत देखी?

कितने शरीफ़ लगते थे अल्फ़ाज़ जिगर में,
अब कागज़ों पर इनकी शरारत देखी?

-कौशल शुक्ला

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को     "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन"  (चर्चा अंक- 3454)  पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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