पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है !
पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है !
अंगारों को झेलना चिलम खूब जानती है
समझ तब आती है जब सर पर पड़ती है !
पराई दावत पर सबकी भूख बढ़ जाती है
अक्सर पड़ोसी मुर्गी ज्यादा अण्डे देती है !
अपने कन्धों का बोझ सबको भारी लगता है
सीधा आदमी पराए बोझ से दबा रहता है !
पराई चिन्ता में अपनी नींद कौन उड़ाता है
भरे पेट भुखमरी के दर्द को कौन समझता है !
लेखिका - कविता रावत
वाह
ReplyDeleteपहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
ReplyDeleteजिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है !
बहुत सुंदर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
प्रस्तुति हेतु धन्यवाद और आभार आपका
ReplyDeleteवाह! बढ़िया
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
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