कैसे कैसे रंग बदलता आदमी ।
वक्त के साथ ढलता आदमी ।।
परिवर्तन में ये तो इतना माहिर ।
गिरगिट से होड़ करता आदमी ।।
स्याह रंग की पहनता पैहरन ।
फिर भी उजली कहता आदमी ।।
आगे बढ़ने की होड़ मे देखो ।
अपनों पे पैर रखता आदमी ।।
आश्रित सदा अमरबेल सा ।
खुद को बरगद समझता आदमी !!
-- मीना भारद्वाज
बेहतरीन मीना दी
ReplyDeleteसादर
वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-09-2019) को "होगा दूर कलंक" (चर्चा अंक- 3469) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अमरबेल और बरगद के बीच पिसता आदमी ... वाह मीना जी क्या खूब लिखा है
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