आप कहते हैं दूषित है वातावरण,
पहले देखें स्वयं अपना अंतःकरण।
कितना संदिग्ध है आपका आचरण,
रात इसकी शरण,प्रातः उसकी शरण।
आप सोते हैं सत्ता की मदिरा लिये,
चाहते हैं कि होता रहे जागरण।
फूल भी हैं यहां, शूल भी हैं यहां,
देखना है कहां पर धरोगे चरण।
आप सूरज को मुट्ठी में दाबे हुये,
कर रहे हैं उजालों का पंजीकरण।
शब्द हमको मिले, अर्थ वो ले गये,
न इधर व्याकरण,न उधर व्याकरण।
लीक पर हम भी चलते मगर 'क़म्बरी',
कौन है ऐसा जिसका करें अनुसरण।
- अंसार क़म्बरी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-08-2019) को "बप्पा इस बार" (चर्चा अंक- 3447) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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श्री गणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
ReplyDeleteशब्द हमको मिले, अर्थ वो ले गये,
ReplyDeleteन इधर व्याकरण,न उधर व्याकरण।
वाह!!!
कौन है ऐसा जिसका करें अनुसरण।
बहुत ही सटीक लाजवाब रचना......
बहुत सुन्दर और सार्थक ...आभार
ReplyDeleteआप सूरज को मुट्ठी में दाबे हुये,
ReplyDeleteकर रहे हैं उजालों का पंजीकरण।
उजालों का पंजीकरण ही तो नहीं किया जा सकता !
अब अपना आदर्श स्वयं बनने का समय है.