वो देखो रात के दामन तले उजाला है
हमारे साथ रहो क्योंकि हमने मंजिल का
हर एक ख़्वाब बड़ी मेहनतों से पाला है
हमारे चारों तरफ हौसले ही रहते हैं
जैसे चांद के चारों तरफ हाला है
हमारे बारे में कहते हैं राह के पत्थर
न आना राह में उसकी की ये जियाला है
हज़ार बार डराने को आई रातें और
हमनें डर को हर इक बार मार डाला है।
-आतिफ़ सिराज
-आतिफ़ सिराज
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरुवार 19 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2019) को "हिन्दी को बिसराया है" (चर्चा अंक- 3464) (चर्चा अंक- 3457) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'