Tuesday, September 10, 2019

कचरे की वस्तुएँ ......अर्चना तिवारी


इंसान बड़ा सयाना है
वह सब जानता है
कि उसे क्या चाहिए, क्या नहीं
नहीं रखता कभी
अपने पास, अपने आसपास 
ग़ैरज़रूरी, व्यर्थ की वस्तुएँ
उन्हें फेंक देता है उठाकर
कचरे के डिब्बे में प्रतिदिन।
इंसान बड़ा सयाना है
नहीं फेंकता कुछ वस्तुएँ कभी
किसी भी कचरे के डिब्बे में
बेशक वे कितनी ही सड़-गल जाएँ
कितनी ही दुर्गन्धयुक्त हो जाएँ
उन्हें रखता जाता है सहेजकर
मन के डिब्बे में प्रतिदिन !!


लेखक परिचय - अर्चना तिवारी

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-09-2019) को    "मजहब की बुनियाद"  (चर्चा अंक- 3455)    पर भी होगी।--
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. अपनों की स्मृतियों को कचरे के डिब्बे में फेंकना आसान नहीं होता, लेकिन सड़े गले विचारों को मस्तिष्क में एकत्र कर, उसे कचरे का डिब्बा ना बनाएं, तो आदमी मानव बन सकता है।

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  3. अच्छी प्रस्तुति !! सडी़ -गली स्मृतियों को यदि एक -एक करके फेंकने की आलत डाली जाए ,तो शायद एक दिन हम उनसे मुक्ति पा सकते हैं ।मार्ग कठिन अवश्य है ,पर नामुमकिन नहीं ।

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  4. दो पक्षों में बंटी रचना, पहली- कचरे बीनती एक मासूम के सन्दर्भ में , "जो आपका बेकार है, मेरा जीवन आधार है" को चरितार्थ करते हुए ; दूसरा पक्ष वो जिसमें मन की बात कही गई है। मन में कुछ सड़ता नहीं, बशर्ते उसे उचित सोच की धूप में पका कर दीर्घायु सुस्वादु 'अचार' बनाई जाए या लहिर सड़ जाए तो भी सोचों के धूप में पका कर 'सिरका' बना कर रखा जाए , ... बस एक सोच साझा किये ... बस यूँ ही ...

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  5. बेहतरीन रचना

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