Sunday, January 28, 2018

बाग जैसे गूँजता है पंछियों से......ममता किरण

बाग जैसे गूँजता है पंछियों से
घर मेरा वैसे चहकता बेटियों से

घर में आया चाँद उसका जानकर वो
छुप के देखे चूड़ियों की कनखियों से

क्या मेरी मंज़िल मुझे ये क्या ख़बर
कह रहा था फूल इक दिन पत्तियों से

दिल का टुकड़ा है डटा सीमाओं पर
सूना घर चहके है उसकी चिट्ठियों से

बंद घर देखा जो उसने खोलकर
एक क़तरा धूप आयी खिड़कियों से

एक शजर ख़ुद्दार टकराने को था
थी चुनौती सामने जब आँधियों से

ख़्वाब में देखा पिता को य़ूँ लगा
हो सदाएँ मंदिरों की घंटियों से

फोन वो खुशबू कहाँ से लाएगा
वो जो आती थी तुम्हारी चिट्ठियों से
-ममता किरण

9 comments:

  1. वाह !!!
    बहुत सुन्दर.... लाजवाब

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  2. सारे शेर बेहतरीन सुंदर रचना उम्दा हौले मन मे बसती सी ।

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  3. वाह !!! बहुत खूब
    बहुत ही सुंदर रचना
    शानदार प्रस्तुति

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-01-2018) को "नवपल्लव परिधान" (चर्चा अंक-2863) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  5. वाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर रचना👌

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