बड़ी दीदी की लिखी त्रिपदियाँ
चातक-चकोर को मदमस्त होते भी सुना है !
ज्वार-भाटे को उसे देख उफनते भी देखा है !
यूँ ही नहीं होता माशूकों को चाँद होने का गुमाँ !!
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रब एक पलड़े पर ढेर सारे गम रख देता है !
दूसरे पलड़े पर छोटी सी ख़ुशी रख देता है !
महिमा तुलसी के पत्ते के समान हुई !!
......
टोकने वाले बहुत मिले राहों के गलियारों में !
जिन्हें गुमान था कि वही सयाने हैं टोली में !
कामयाबी पर होड़ में खड़े दे रहे बधाई मुझे !!
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नफ़रत सुलगाती हैं ख़ौफ़ ए मंज़र
उल्फ़त मोड देती है नोक ए खंजर
क्यूँ बुनता है ताने बाने साज़िशों के हरदम
- विभारानी श्रीवास्तव
आभारी हूँ 🙏
ReplyDeleteसस्नेहाशीष संग शुक्रिया छोटी बहना 😊🌹
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete👏👏👏सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर दी जी।
ReplyDeleteचांद चकोर से लेकर सीर फरहाद
सलीम अनार कली तक सब समाहित हो गया एक छोटे से काव्य मे।
गागर मे सागर।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-01-2018) को "कुहरा चारों ओर" (चर्चा अंक-2846) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर !
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