अक्स ने आईने का घर छोड़ा
एक सौदा था जिसने सर छोड़ा
भागते मंज़रों ने आंखों में
ज़िस्म को सिर्फ़ आंख भर छोड़ा
हर तरफ़ रोशनी फैल गई
सांप ने जब खंडहर छोड़ा
धूल उड़ती है धूप बैठी है
ओस ने आंसुओं का घर छोड़ा
खिड़कियाँ पीटती है सर शब भर
आखिरी फ़र्द ने भी घर छोड़ा
क्या करोगा निज़ाम रातों में
ज़ख़्म की याद ने अगर छोड़ा
-शीन काफ़ निज़ाम
उत्कृष्ट व प्रशंसनीय प्रस्तुति........
ReplyDeleteनववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ नई पोस्ट पर आपके विचारो का इंतजार।सादर...!
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-01-2018) को "2017. तुमसे कोई शिकायत नहीं" (चर्चा अंक-2837)
ReplyDeleteपर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरा ब्लॉग बंद होगया
ReplyDeleteलाज़वाब
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