आपसे जब दोस्ती होने लगी
हाँ ग़मों में अब कमी होने लगी
रोज़ की ये दौड़ रोटी के लिए
भूख के घर खलबली होने लगी
आप मेरे हम सफ़र जब से हुए
ज़िन्दगी मेरी भली होने होने लगी
रख दिए कागज़ में सारे ज़ख्म जब
सूख के वो शायरी होने लगी
शहर भर में ज़िक्र है इस बात का
पीर की चादर बड़ी होने लगी
फूल तितली चिड़िया बेटी के बिना
कैसे ये दुनिया भली होने लगी
सर्द दुपहर उम्र की है साथ में
याद स्वेटर ऊनी सी होने लगी
सीख देता है नई वो इसलिए
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी
ज़ख्म अब कहने लगे 'गुमनाम' जी
आपसे अब दोस्ती होने लगी
-’गुमनाम’ पिथौरागढ़ी
(नवीन विश्वकर्मा)
वाह!!!!
ReplyDeleteकमाल की गजल
हर शेर लाजवाब...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर
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