निलंबन हुवा नीलाम्बर से
भान हुवा अच्युताका कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी, इतराई
फूलों पत्तों दूब पर देख
अपनी शोभा मुस्काई,
गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब उर्धमुखी
हाँ, भूल गई "मैं "
अब निश्चय है अंतःपास मे
मै तुषार बूंद नश्वर, भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर
"मैं"आत्मा अविनाशी
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप।
-कुसुम कोठारी
वाह
ReplyDeleteबेहद सुंदर भावाभिव्यक्ति
सादर आभार दी जी।
Deleteशुभ संध्या।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteशुभ संध्या ।
बहुत खूब
ReplyDeleteमन को भा गई आप की शानदार रचना
ढेर सा आभार मित्र जी।
Deleteबहुत सा आभार दी मेरी रचना को आपकी धरोहर मे देख मुझे जो आत्मानुभुति हुई वो अप्रतिम है।
ReplyDeleteपुनः आभार दी सनेह बनाये रखें।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2845 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद