1
ठूँठ का मैत्री
वल्लरी का सहारा
मर के जीया।
2
शीत में सरि
स्नेह छलकाती स्त्री
फिरोजा लगे।
3
गरीब खुशियाँ
बारम्बार जलाओ
बुझे दीप को।
4
क्षुधा साधन
ढूंढें गौ संग श्वान
मिलते शिशु।
5
आस बुनती
संस्कार सहेजती
सर्वानन्दी स्त्री।
सर्वानन्दी = जिसको सभी विषयों में आनंद हो
6
स्त्री की त्रासदी
स्नेह की आलिंजर
प्रीत की प्यासी।
-विभा रानी श्रीवास्तव
बहुत सुंदर रचना जी आदरणिया विभा रानी श्रीवास्तव जी
ReplyDeleteअद्भुत अप्रतिम।
ReplyDeleteबहुत सुंदर हाइकु दी जी ।
सुप्रभात शुभ दिवस।
आभारी हूँ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर लेखन का पहुँच जाना बड़े मान की बात
भावुकतापूर्ण भावानुभूति होती है
सस्नेहाशीष संग शुक्रिया छोटी बहना 😍😍
बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteलाजवाब हाइकु
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-01-2018) को "हमारा सूरज" (चर्चा अंक-2843) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खूबसूरत
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