ज़ुल्म पर जब शबाब आएगा
देखना इंक़लाब आएगा
उसकी ज़िद है तो टूट जाने दे
कल कोई और ख़्वाब आएगा
मौत! डर इसलिए भी लगता है
उम्र भर का हिसाब आएगा
इन अंधेरे को कौन समझाए
सुबह फिर आफ़ताब आएगा
फ़स्ल काँटों की पहले आती है
तब कहीं इक गुलाब आएगा
-सचिन अग्रवाल
नए मरासिम से
जी अप्रतिम विचारों से सुसज्जित रचना
ReplyDeleteमौत! डर इसलिए भी लगगता है
उम्र भर का हिसाब आयेगा विशेष आकर्षित करती दमदार पंक्तियाँ।
सुप्रभात शुभ दिवस।
वाह बहूत खूब जीवन की असलियत के करीब रचना .....
ReplyDeleteफ़स्ल कांटों की पहले आती हैँ
तब जाके गूलाब आता हैँ ....
आफरीन
सुन्दर
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