Friday, January 26, 2018

मन कहीं खोना चाहता है............स्मृति आदित्य




खिले थे गुलाबी, नीले,
हरे और जामुनी फूल
हर उस जगह
जहाँ छुआ था तुमने मुझे,



महक उठी थी केसर
जहाँ चूमा था तुमने मुझे,

बही थी मेरे भीतर नशीली बयार
जब मुस्कुराए थे तुम,


और भीगी थी मेरे मन की तमन्ना
जब उठकर चल दिए थे तुम,

मैं यादों के भँवर में उड़ रही हूँ
अकेली, किसी पीपल पत्ते की तरह,
तुम आ रहे हो ना
थामने आज ख्वाबों में,


मेरे दिल का उदास कोना
सोना चाहता है, और
मन कहीं खोना चाहता है
तुम्हारे लिए, तुम्हारे बिना। 


-
स्मृति आदित्य

9 comments:

  1. हृदयस्पर्शी सृजन। मनमोहक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-01-2018) को "शुभकामनाएँ आज के लिये" (चर्चा अंक-2861) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    गणतन्त्र दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. लाजवाब रचना....
    वाह!!!!

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