Tuesday, August 6, 2019

अबूझ पहेली-सी ज़िंदगी .....अनीता वाधवानी

अबूझ पहेली-सी ज़िंदगी..
रोज ही चल पड़ती है
थामकर मेरा हाथ,
बड़ी चालाकी से ये ज़िंदगी
दिखाती है सुनहरे ख़्वाब.

थमे न थे पैर कभी
रुके न मन की आस
लालसाओं के भंवरजाल में
कराती नहीं आभास.

यूं ही छोड़ देगी किसी दिन
अनजाने एक मोड़ पर
करके कुछ बेचैन मुझे
छोड़कर कुछ सवाल.

सौंप देगी नया एक पिंजर
चल देगी फिर अपनी राह
सदियों की इस लंबी यात्रा पर
कहां थमेगी किस जगह पर.
- अनीता वाधवानी

7 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. यूं ही पंजर बदलते रहे बे मकसद
    कभी इस घर तो कभी उस घर
    बता ऐ जिन्दगी आखिर तेरी रजा क्या होगी
    कोई ठिकाना भी होगा कभी या बेनाम भटकन होगी।
    बहुत सुंदर आध्यात्मिक सृजन।

    ReplyDelete
  3. बेहद शानदार लाजवाब हैं

    ReplyDelete
  4. वाह सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. यूं ही छोड़ देगी किसी दिन
    अनजाने एक मोड़ पर
    करके कुछ बेचैन मुझे
    छोड़कर कुछ सवाल.
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब...

    ReplyDelete