कितनी अँधेरी रातों के बाद
कितने अकेले सफ़र तमाम
परिंदे ने कहीं फ़िर
आसरे की उम्मीद कर ली थी
घर ने कहा तू लौट जा
कोई और अब रहता है यहाँ
बाकि है तन्हा सफ़र तेरा !
लौटा है सफ़र में
अकेला परिंदा
फ़कीर रूह न किसी की
न कहीं इसका बसेरा
- पूजा प्रियंवदा
वाह!हर परिंदे की यही कहानी है।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-08-2019) को "सुख की भोर" (चर्चा अंक- 3433) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक ...आभार
ReplyDelete