रह-रहकर मेरी आँखों में झाँकता रहा,
सौभाग्य
से आती हैं
बेटियाँ घर के आँगन में
खुशियाँ वहीं हैं बसती
बेटियाँ जहाँ हैं चहकती
दुर्भाग्य
है यह उनका
जो कदर न इनकी जाने
बेटों के मोह में फंसे
बंद करते किस्मत के दरवाजे
सौभाग्य
बसे उस घर में
बहुएँ मुस्कुराए जिस घर में
भगवान का होता बास
जहाँ नारी का है सम्मान
दुर्भाग्य
पाँव पसारे
जहाँ लालच भरा हो मन में
दहेज की लालसा में
बेटी सुलगती हो घर में
सौभाग्य
अगर पाना है
सोच को बदल दे
न फर्क कर संतान में
स्त्री को महत्व दे
दुर्भाग्य
मिटे जीवन में
माँ-बाप की कर सेवा
भगवान यह धरती के
आर्शीवाद से मिले मेवा
लेखिका परिचय - अनुराधा चौहान
सुन्दर प्रस्तुति अनुराधा जी बेटियों का आना घर में सौभाग्य ही लता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद ऋतु जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-08-2019) को "रिसता नासूर" (चर्चा अंक- 3422) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteबहुत खूब प्रिय अनुराधा जी , माँ का तुजुर्बा भारतीय संस्कृति का अद्भुत आख्यान है | सुंदर रचना !!!!
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteसौभाग्य
ReplyDeleteबसे उस घर में
बहुएँ मुस्कुराए जिस घर में
भगवान का होता बास
जहाँ नारी का है सम्मान
बहुत ही लाजवाब रचना...
वाह!!!
धन्यवाद सखी
Deleteमेरी रचना धरोहर पर..मेरा सौभाग्य है। हार्दिक आभार यशोदा जी।
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