Thursday, August 1, 2019

बारिश....संचयन डॉ. वर्षा सिंह

आषाढ़ बीत गया और श्रावण आ गया.... जी हां यानी आ गए हैं 
बारिशों के दिन। बारिशों की रातें । सुबह बारिश, शाम बारिश, 
दोपहर बारिश यानी हर पहर बारिश। बारिश और बारिश । 
तो आइए आज हम बातें करें बारिश की और ग़ज़लों की यानी 
ग़ज़लों में बारिश और बारिश में गजलें.... 
कैफ़ भोपाली का यह ख़ूबसूरत शेर देखें ....
दर-ओ-दीवार पे शक्लें सी बनाने आई
फिर ये बारिश मिरी तन्हाई चुराने आई
- कैफ़ भोपाली

उर्दू के ग़ज़लगो तहज़ीब हाफ़ी काग़ज़ की किश्ती से 
अपने वज़ूद की तुलना करते हुए कहते हैं....
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
- तहज़ीब हाफ़ी

शायर मोहम्मद अल्वी कहते हैं कि बारिश धूप की 
गुज़ारिश पर ही आई है...
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी

तो रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक' कह उठते हैं....
आज फिर बारिश डराने आ गयी।
पर्वतों पर कहर ढाने आ गयी।

मेघ छाये-गगन काला हो गया,
चैन आँखों का चुराने आ गयी।।

लीलने को अब नहीं कुछ भी बचा
राग फिर किसको सुनाने आ गयी?

गाँव की वीरान कुटिया पूछती
क्यों यहाँ आफत मचाने आ गयी?

जिन्दगी के आशियाने ढह गये,
पत्थरों को अब सताने आ गयी।

अब नहीं भाता तुम्हारा “रूप” हमको,
क्यों यहाँ सूरत दिखाने आ गयी?

-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अख़्तर होशियारपुरी के ये अशआर यथार्थ के बेहद करीब हैं 
और उन गरीबों की बात करते हैं जिनके कच्चे मकान 
बारिश में अक्सर टूट फूट जाते हैं....
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था

- अख़्तर होशियारपुरी


यथार्थवादी गजलों के रचनाकार दुष्यंत कुमार का बारिश के प्रति नजरिया कुछ और ही है । बारिश की गजलें और गजलों में बारिश दुष्यंत की अपनी शैली में कुछ इस तरह से बयां होती है...
देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली
ये ख़तरनाक सचाई नहीं जाने वाली

कितना अच्छा है कि साँसों की हवा लगती है
आग अब उनसे बुझाई नहीं जाने वाली

एक तालाब-सी भर जाती है हर बारिश में
मैं समझता हूँ ये खाई नहीं जाने वाली

-दुष्यंत कुमार 

दिगंबर नासवा भी कुछ इसी तरह के बेहद खूबसूरत अशआर 
कहते हैं जिसमें दुनिया का दुख दर्द और शायर का दर्द 
एकाकार होता दिखाई देता है....
खुल कर बहस तो ठीक है इल्जाम ना चले
जब तक न फैसला हो कोई नाम ना चले

तुम शाम के ही वक़्त जो आती हो इसलिए
आए कभी न रात तो ये शाम ना चले

बारिश के मौसमों से कभी खेलते नहीं
टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले
- दिगम्बर नासवा

इश्क के रंग में डूबे हुए शेर कहने वाले शायर जमाल एहसानी 
कुछ इस तरह के अशआर कहते हैं बारिश में 
अपने महबूब को याद करते हुए....
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं
भीगने वालों को कल क्या-क्या परेशानी हुई

- जमाल एहसानी


तो वहीं उर्दू के मशहूर शायर अंजुम सलीमी बारिश में  
आग लगाने वाली ख़ूबसूरत बात को इन अल्फाजों में बयां करते हैं...
साथ बारिश में लिए फिरते हो उस को 'अंजुम'
तुम ने इस शहर में क्या आग लगानी है कोई
- अंजुम सलीमी

कवयित्री डॉ. (सुश्री) शरद सिंह हिंदी और उर्दू में समान 
अधिकार रहते हुए बड़ी ख़ूबसूरती के साथ बारिश में भीगने 
की बात को कुछ इस तरह बयां करती हैं...
घर से निकलो, भीगें हम तुम बारिश में
दो पल जी लें, झूमें हम तुम बारिश में

बह निकली निर्बाध यहां जलधारा भी
कुछ पल साथ बिता लें हम तुम बारिश में

- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की इस ग़ज़ल के भी कुछ शेर देखें.....

भीगे मौसम में बारिश की लिख दे मनवा एक कहानी ।
एक कहानी ऐसी जिसमें न कोई राजा न कोई रानी।

ताल तलैया पोखर नदियां, पानी से भीगे हर आखर
राग-द्वेष और दुनियादारी, ये बातें सब आनी-जानी।

बादल हो कान्हा के जैसे  भीगे तो हर पोर भिगाए
सूखे मौसम के बदले हो नन्हीं बूंदों की मनमानी।

-  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

शायर मोहम्मद अल्वी कहते हैं कि बारिश धूप की
गुज़ारिश पर ही आई है... 
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी

कुंवर बेचैन ने कुछ इस तरह अल्फाज़ दिए हैं 
अपने शेरों के माध्यम से....

शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम
ज़िन्दगी है धूप, तो मदमस्त पुरवाई-सी तुम

आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम

चाहे महफ़िल में रहूं चाहे अकेले में रहूं
गूंजती रहती हो मुझमें शोख शहनाई-सी तुम

लाओ वो तस्वीर जिसमें प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा, और शरमाई-सी तुम

मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता ‘कुँअर’
हो मेरे चारों तरफ सागर की गहराई-सी तुम

– कुँअर बेचैन

बशीर बद्र अपने दिल को बारिशों में फूल सा कहते हुए 
अपनी बात कुछ इस तरह बयां करते हैं....
मैं कहता हूँ वो अच्छा बहुत है,
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है।

खुदा इस शहर को महफूज रख़े,
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है।

मैं तुझसे रोज मिलना चाहता हूँ,
मगर इस राह में खतरा बहुत है।

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा,
ये बच्चा रात में रोता बहुत है।

अमित अहद ने बारिश के काफिए को लेकर 
बड़े ख़ूबसूरत शेर कहे हैं....
जब भी बरसी अज़ाब की बारिश
रास आयी शराब की बारिश

मैंने पूछा कि प्यार है मुझसे?
उसने कर दी गुलाब की बारिश

मैंने इक जाम और माँगा था
उसने कर दी हिसाब की बारिश

देर तक साथ भीगे हम उसके
हमने यूँ कामयाब की बारिश

प्यार से रोक दी ‘अहद’ मैंने
आज उसके इताब की बारिश
- अमित अहद

और अब आज की चर्चा के अंत में वर्षा यानी 
इस ब्लॉग की लेखिका डॉ वर्षा सिंह  की यह ग़ज़ल 
जो बारिशों के नाम है, 

आए बारिशों के दिन।
बहकती ख़्वाहिशों के दिन।

भीगा है धरा का तन
गए अब गर्दिशों के दिन।

नदी चंचल, हवा बेसुध
नहीं अब बंदिशों के दिन।

लता झाड़ी गले मिलती, 
भुला कर रंजिशों के दिन।

हुई "वर्षा," हुए पूरे
सुलह की कोशिशों के दिन।
- डॉ. वर्षा सिंह

9 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह!!!
    बहुत लाजवाब...

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. वाह !!
    अद्भुत संकलन ।

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  5. वाह !बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

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  6. ख़ुदा कसम मज़ा आ गया...पूरी की पूरी बारिश समेट दो आपने...चुनिन्दा अशआरों की...👌👌👌

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