अस्मत से खेलती दुनिया में
चुप छुप अस्तित्व बनाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाये जा.....
छोड़ दे अपनी ओढ़नी चुनरी,
लाज शरम को ताक लगा
बेटोंं सा वसन पहनाऊँ तुझको
कोणों को अपने छुपाये जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा....
छोड़ दे बिंंदिया चूड़ी कंगना
अखाड़ा बनाऊँ अब घर का अँगना
कोमल नाजुक हाथों में अब
अस्त्र-शस्त्र पहनाए जा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....
तब तक छुप-छुप चल मेरी लाडो
जब तक तुझमेंं शक्ति न आये
आँखों से बरसे न जब तक शोले
किलकारी से दुश्मन न थरथराये
हर इक जतन से शक्ति बढ़ाकर
फिर तू रूप दिखाए जा...
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढाए जा....।।
रक्तबीज की इस दुनिया में
रक्तपान कर शक्ति बढ़ा
चण्ड-मुण्ड भी पनप न पायेंं
ऐसी लीला-खेल रचा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा.....
रणचण्डी दुर्गा बन काली
ब्रह्माणी,इन्द्राणी, शिवा....
अब अम्बे के रूपोंं में आकर
डरी सी धरा का डर तू भगा
आ मेरी लाडो छुपके मेरे पीछे
हौले से कदम बढ़ाए जा...।
लेखिका परिचय - सुधा देवरानी
वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सिर्फ पलायन नहीं शक्ति का आह्वान करती सार्थक रचना।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-08-2019) को "चार कदम की दूरी" (चर्चा अंक- 3443) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!नारी शक्ति को नमन 🙏 बहुत ही खूबसूरत सृजन !
ReplyDeleteवाह! नारियों में शक्ति का संचार करती अप्रतीम रचना।
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDeleteबहुत खूब प्रिय संजय | आप सुधा बहन के ब्लॉग से उनकी ये अतुलनीय रचना ढूंढ कर लाये जिसके लिए आपका हार्दिक आभार | ये एक भावातुर माँ की स्नेह भरी पाती है अपनी बेटी के नाम , जिसमें उसके अस्तित्व की रक्षा की चिंता भी है तो उसे आगे बढ़कर जीवन में प्रचंड उपलब्धियां प्राप्त करने की सार्थक प्रेरणा भी है | हार्दिक बधाई सुधा बहन के नाम | उनकी ये रचना सचमुच बहुत प्यारी और अपनी तरह की एकमात्र रचना है | आपको पुनः आभार |
ReplyDeleteएकदम समयोचित!यही नमनीयता,स्त्री कोमल बनाती है ,तो दूसरी ओर चंडिका और दृढ़ और कराली भी.स्थिति के अनुरूर स्वयं को ढालना भी आवश्यक है .चुनाव हेतु संजय जी को साधुवाद.
ReplyDeleteसुधा दी, नारी को अपनी रक्षा खुद ही करनी होगी। तभी वो सुरक्षित रह पाएगी। इस हेतु बच्चियों को प्रेरित करती बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteवाह बेहतरीन
ReplyDeleteलाजवाब सुंदर रचना
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