हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी
ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी
आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी
फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी
यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी
-कुसुम सिन्हा
वाह
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर सरस सृजन।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 27अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
ReplyDeleteघटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी
वाहवाह कुसुम जी लाजवाब गजल...
एक से बढ़कर एक शेर ।
वाह ... बहुत लाजवाब शेर ...
ReplyDeleteमज़ा आया ...