नवाजिश करम और इनायत तेरी
तुमको जीना हुआ इबादत मेरी ...
हँसी होठों पे दिल में दर्द लिए
क़ाबिले दाद है लियाकत मेरी ...
रोकना कश्ती को ना है बस में उसके
मौजे सागर से अब है बगावत मेरी ...
लाख आगाह किया वाइज़ ने मुझको
डूबना इश्क में ठहरी थी रवायत मेरी....
हर इक इल्ज़ाम पे सर झुकता है
देगी गवाही खुद ही सदाक़त मेरी...
नाम शामिल था वफादारों में मेरा
आँखों में छलक आयी अदावत मेरी...
-मुदिता
मायने:
इनायत-मेहरबानी/कृपा, इबादत-पूजा,
लियाकत-योग्यता, बग़ावत-विद्रोह,
वाइज़ - उपदेशक, रवायत-परंपरा,
सदाक़त-सच्चाई, अदावत-दुश्मनी
बेहद सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteउम्दा/बेहतरीन सृजन।
ReplyDeleteउत्कृष्ट भाव सृजन
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह !बहुत ही सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत लाजवाब....
ReplyDeleteवाह!!!
हँसी होठों पे दिल में दर्द लिए
ReplyDeleteक़ाबिले दाद है लियाकत मेरी ...
laajwaab gazal hui...achhe ehsaas jodhe hain aapne...
bdhaayi