देह की
परिधियों तक
सीमित कर
स्त्री की
परिभाषा
है नारेबाजी
समानता की।
दस हो या पचास
कोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?
रुढ़ियों को
मान देकर
अपमान मातृत्व का
मान्यता की आड़ में
अहं तुष्टि या
सृष्टि के
शुचि कृति का
तमगा पुरुष को
देव दृष्टि
सृष्टि के
समस्त जीव पर
समान,
फिर...
स्त्री पुरुष में भेद?
देवत्व को
परिभाषित करते
प्रतिनिधियो;
देवता का
सही अर्थ क्या?
देह के बंदीगृह से
स्वतंत्र होने को
छटपटाती आत्मा
स्त्री-पुरुष के भेद
मिटाकर ही
पा सकेगी
ब्रह्म और जीव
की सही परिभाषा।
लिखिका परिचय - श्वेता सिन्हा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
दस हो या पचास
ReplyDeleteकोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे? बहुत खूब प्रस्तुति श्वेता जी
वाह
ReplyDeleteवाह बेहतरीन बेहतरीन श्वेता!
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति।
बेहतरीन रचना
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