मेरे चेहरे की उदासियों को पढ़ता
फिक्र की करवटें बदलता कभी,
फिर सवालों की बौछार भी करता
पर मेरी खामोशियों का वाईपर,
जाने कब उन्हें एक सिरे से
साफ कर देता
एक मुस्कान :) ही तो चाहती थी
माँ मैं ले आती बनावटी हँसी
खिलखिलाकर हँसती माँ बुझे मन से कहती
चल जाने दे मैं तुझसे बात नहीं करती
गलबहियाँ डाल मैं
डालती सब्र की चादर भी उनकी पलकों पर
सीखने दो मुझे भी उलझनों के पार जाकर
कैसा लगता है समझने दो
न तुम्हारी फिक्र है न मेरे साथ यकीन
मानो वो दुआ का काम करेगी !
.... कुछ सोच माँ निर्णय की स्थिति में आती
मन की कसमसाहट पे
थोड़ा अंकुश लगाती मेरी नादानियों पर
गौर करना भी सिखलाती
तो कोशिशों को जीतने का फ़न भी बताती
मेरी हर मुश्किल पे हौसले की मुहर जब लगाती
यकीं मानो उन पलों में
मैं हारकर भी जीत जाती !!
लेखक परिचय - सीमा सिंघल सदा
मां का साथ हो तो फिर हार होती ही नहीं.
ReplyDeleteउम्दा
सच को अपने शब्दों में पिरो दिया है
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ।
ReplyDeleteजीतकर हारा हुआ दिखना शायद हर मां के जीन्स में समा चुका है ... बहुत बढ़िया लिखा सीमा जी
ReplyDeleteअहा !! बहुत प्यारा है माँ का ये अव्यक्त तुजुर्बा ! माँ हमें खुद से ज्यादा जानती है| प्यारी रचना सीमा जी हार्दिक शुभकामनायें |
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