Tuesday, August 27, 2019

आती थी याद पहले पर ...कुसुम सिन्हा


हवाओं में ऐसी ख़ुशबू पहले कभी न थी
ये चाल बहकी बहकी पहले कभी न थी

ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी

आँखें तरस रहीं हैं दीदार को उनके
दिल में तो ऐसी बेबसी पहले कभी न थी

फूलों पे रख दिए हैं शबनम ने कैसे मोती
फूलों पे ऐसी रौनक पहले कभी न थी

यादों की दस्तकों ने दरे दिल को खटखटाया
आती थी याद पहले पर ऐसी कभी न थी
-कुसुम सिन्हा

5 comments:

  1. वाह बहुत सुंदर सरस सृजन।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " मंगलवार 27अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ज़ुल्फ़ ने खुलके उसका चेहरा छुपा लिया
    घटा आसमा पे ऐसी पहले कभी न थी
    वाहवाह कुसुम जी लाजवाब गजल...
    एक से बढ़कर एक शेर ।

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  4. वाह ... बहुत लाजवाब शेर ...
    मज़ा आया ...

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