एक डाह है रूह में
जैसे तेरी उपेक्षा का
जलता कोयला
छू गया हो
जले हुए घाव सुना
सालों तक उतारते हैं
एक काले लम्हे की पपड़ी
और निशान
रह जाता है फिर भी
इस जिस्म के
सुप्त ज्वालामुखी में
मेरी रूह का ग्लेशियर
पिघलने लगा है
बूंदों के वाष्प बनने से
पहले न लौटो तो
लावे के नमक में
चख लेना मुझे !
-पूजा प्रियम्वदा
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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