Saturday, December 29, 2018

बिसूरती चाँदनी ....श्वेता सिन्हा

उदास रात के दामन में
बिसूरती चाँदनी 
खामोश मंजर पसरा है
मातमी सन्नाटा 
ठंडी छत पर सर्द किरणें
बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
 काफ़िला कोई
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
चुपचाप अटल सा
कंपकपाते बर्फ़ के मानिंंद
सूनी हथेलियों को
अपने तन के इर्द-गिर्द लपेटे
ख़ुद से बेखबर
मौसम की बेरूख़ी को सहते
यादों को सीने से लगाये
अपनी ख़ता पूछती है नम पलकों से
बेवज़ह जो मिली 
उस सज़ा की वजह पूछती है 
एक रूह तड़पती-सी
यादों को मिटाने का रास्ता पूछती है।
-श्वेता सिन्हा
मूल रचना

11 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना सखी

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  2. बहुत खूब स्वेता जी

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  3. एक रूह तड़पती-सी, यादों को मिटाने का रास्ता पूछती है
    बहुत खूब..... दिल को छू गई ये पक्तियां, सादर स्नेह... सखी

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  4. श्वेता, तुम्हारा चन्द्र-शतक हमको कल्पना-लोक में विचरण करा चुका, अब हमको यथार्थ के इस लोक की सैर कराओ क्योंकि चाँद और चांदनी उनको मयस्सर नहीं होते जिनको कि भर-पेट रोटी नहीं मिलती और जिनके सर पर छत नहीं होती है -
    चांदनी रात का मिजाज़ न पूछ,
    हम ग़रीबों के घर नहीं आती.

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    1. कुछ पंक्तियाँ नए उभरते गीतकार अमन अक्षर की दे रही हूँ यहाँ -
      "किसी कल्पनालोक में बीते
      वो जीवन ही अच्छा है !
      इस तर्कों वाली दुनिया से
      प्रेमी मन ही अच्छा है !
      आस का हर पत्ता जब
      उस डाली से टूट गया
      यूँ लगता है प्रियतम,
      अपना खालीपन ही अच्छा है!"

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-12-2018) को "नये साल की दस्तक" (चर्चा अंक-3201) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बहुत सुंदर रचना

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  7. वाह बहुत खूब लिखा है आपने श्वेता जी।

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