ख़ुशी आयी
ख़ुशी चली गयी
ख़ुशी आख़िर
ठहरती क्यों नहीं ?
आँख की चमक
मनमोहक हुई
कुछ देर के लिये
फिर वही
रूखा रुआँसापन
ग़म आता है
जगह बनाता है
ठहर जाता है
बेशर्मी से
ज़िन्दगी को
बोझिल बनाने
भारी क़दमों से
दुरूह सफ़र
तय करने के लिये
ख़ुशी और ग़म का
अभीष्ट अनुपात
तय करते-करते
एक जीवन बीत जाता है
अमृत घट रीत जाता है।
© रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया यशोदा बहन जी रचना को प्रतिष्ठित ब्लॉग "मेरी धरोहर" के ज़रिये विशिष्ट पाठक वर्ग के समक्ष रखने एवं मनोबल बढ़ाने के लिये।
ReplyDeleteशुभ संध्या..
Deleteबढ़िया लिखते हैं आप..
साधुवाद....
सादर....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.12.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3191 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद