जिसके पीछे सब हैं कतार में
कोई शब्दों से व्यक्त करता है
तो कोई मौन रहकर
प्रेम
बंसी के बजने में हो जाता है
धुन मीठी
तो कई बार हो जाता है प्रेम
विष के प्याले में अमृत !
...
प्रेम एक आहट है
जो बिना किसी पद़चाप के
शामिल हो जाता है जिंदगी में
धड़कनों का अहसास बनकर
प्रेम विश्वास है
जब भी साथ होता है
पूरा अस्तित्व
प्रेममय हो जाता है !
....
प्रेम जागता है जब
नष्ट हो जाते हैं सारे विकार
अहंकार दुबक जाता है
किसी कोने में
क्रोध के होठों पर भी
जाने कैसे आ जाती है
एक निश्छल मुस्कान
प्रेम का जादू देखो
लोभ संवर जाता है
इसकी स्मृतियों में !
....
ऐसी ही घड़ी में होता है
जन्म करूणा का
जहां प्रेम हो जाता है नतमस्तक
वहाँ दृष्टि होती है
सदा ही समर्पण की
समर्पण सिर्फ एक ही भाव
भरता है कूट-कूट कर
मन की ओखल में
विश्वास की मूसल से
जिनमें मिश्रित होते हैं
संस्कार परम्पराओं की मुट्ठी से
जो एक ताकत बन जाते हैं
हर हाथ की
तभी विजयी होता है प्रेम
उसके जागने का, होने का,
अहसास सबको होता है
नहीं मिटता फिर वो
किसी के मिटाने से !!
....
© सीमा 'सदा' सिंघल
वाह बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteप्रेम के ढाई अक्षर है पर शब्दों में उच्च है।
वाह बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (31-12-2018) को "जाने वाला साल" (चर्चा अंक-3202) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सच्चे प्रेम की खूब परिभाषा ,यशोदा दीदी।
ReplyDeleteसच्चा प्रेम मौन इबादत हैं ,
सच्चा प्रेम सिर्फ देने में यकीन रखता है ...... बदले में चाहे कुछ मिले या ना मिले ,प्रेम तो प्रेम है वो शाश्वत है ।
सच्चे प्रेम की आग में लोभ ,क्रोध ,मोह सब जल जाते है सच्चे प्रेम को पूरा परिभाषित कर दिया आपने...... ,सादर नमन
ReplyDeleteप्रेम की सुंदर और भावपूर्ण अनुभूति और अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबधाई
मैं साँस पिय तुम हरिदय मैं आतम तुम देह |
ReplyDeleteतुम मोहन मैं राधिका सो तो साँच सनेह || १ ||
तुम अधर मैं बाँसुरिया में सुर तुम संगीत |
तुम गीत मैं मधुर तान सो तो साँचिहि प्रीत || २ ||
तुम नरतन में नर्तिका मैं रागिनि तुम राग |
मैं वाद तुम वादबृंद सो साँचा अनुराग || ३ ||
तुम माथ मैं मोरमुकुट मैँ माला तुम हेम |
तुम करधन मैं कंकनी सो तो साँचा पेम || ४ ||
जो मैं कंचन कामिनी तो तुम रूप सिंगार |
मैं मन मुकुर अरु तुम छबि साँचा सोइ प्यार || ५ ||