मुसाफि़र सी इस जिंदगी में
जो किसी के साथ चलना जानता है
जो साथ चलते-चलते
किसी का हो जाना चाहता है
जो किसी का होकर
उसे अपना बना लेता है
ऐसी पगडंडियां सिर्फ औ सिर्फ
प्रेम ही दौड़कर पार कर सकता है
समेट लेता है अहसासों को
भावनाओं की अंजुरी में
प्रेम के ढाई आखर पढ़कर ही नहीं
जीकर जिंदगी को
कितने पायदान चढ़ता है
बिन डगमगाये !!
-सीमा 'सदा' सिघल
बेहतरीन रचना 👌
ReplyDeleteभावनाओं के बिना एक मशीन भर रह जाता है मनुष्य -मुर्दा दिल ख़ाक जिया करते हैं !
ReplyDeleteसुन्दर भाव।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-12-2018) को "जातिवाद में बँट गये, महावीर हनुमान" (चर्चा अंक-3182) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रेम हो तो हर सफर ... ये शिखर भी आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है सीमा जी...ऐसी पगडंडियां सिर्फ औ सिर्फ
ReplyDeleteप्रेम ही दौड़कर पार कर सकता है ...