रात यह हेमन्त की
दीप-तन बन ऊष्म करने
सेज अपने कन्त की
नयन लालिम स्नेह दीपित
भुज मिलन तन-गन्ध सुरभित
उस नुकीले वक्ष की
वह छुवन, उकसन, चुभन अलसित
इस अगरु-सुधि से सलोनी हो गयी है
रात यह हेमन्त की
कामिनी सी अब लिपट कर सो गयी है
रात यह हेमन्त की
धूप चन्दन रेख सी
सल्मा-सितारा साँझ होगी
चाँदनी होगी न तपसिनि
दिन बना होगा न योगी
जब कली के खुले अंगों पर लगेगी
रंग छाप वसन्त की
कामिनी सी अब लिपट कर सो गयी है
कामिनी सी अब लिपट कर सो गयी है
बहुत सुन्दर ! गिरिजा कुमार माथुर को हम सुमित्रानंदन पन्त का उत्तराधिकारी कह सकते हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना 👌|
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2018) को "नव वर्ष कैसा हो " (चर्चा अंक-3199)) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! हेमंत पर बहुत कम रचनाएँ हैं इतनी सुंदर।
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