घर की किस्मत जगी घर में आए सजन
ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन
आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन
अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण
ज़िंदगी से है हैरान यमराज भी
आज हर दीप अँधेरे पे है ख़ंदा-ज़न
उन के क़दमों से फूल और फुल-वारियाँ
आगमन उन का मधुमास का आगमन
उस को सब कुछ मिला जिस को वो मिल गए
वो हैं बे-आस की आस निर्धन के धन
है दीवाली का त्यौहार जितना शरीफ़
शहर की बिजलियाँ उतनी ही बद-चलन
उन से अच्छे तो माटी के कोरे दिए
जिन से दहलीज़ रौशन है आँगन चमन
कौड़ियाँ दाँव की चित पड़ें चाहे पट
जीत तो उस की है जिस की पड़ जाए बन
है दीवाली-मिलन में ज़रूरी 'नज़ीर'
हाथ मिलने से पहले दिलों का मिलन
- नजीर बनारसी
वाह
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteदिलों का मिलन हो जाए तो बच्चन जी की भाषा में - 'दिन को होली, रात दिवाली' मना करेगी.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 06.12.20-18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3177 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद