Monday, December 3, 2018

गृह लक्ष्मी....पूजा प्रियंवदा

Housewife
उद्यम से स्वादविहीन 
आखिरी रोटी खाती है 
उसकी रसोई के विश्लेषण 
में कहे सब कड़वे शब्द 
चिपके हैं तालू से

सुन्दर, महंगी साड़ी 
उसने बचा रखी है 
किसी विशेष अवसर के लिए 
जब कि मर चुके हैं 
उसके देह के सारे त्यौहार 
तुम्हारे बिस्तर में

बच्चों की ख्वाहिशों 
का हिसाब लगाती 
मुल्तवी कर चुकी है 
वो अपने सारे अल्हड़पन 
तुम्हारे असम्वेदन को 
रोज़ सींचती गूंगे आंसुओं से

तुम्हारी देवी, प्रिया 
गृहलक्ष्मी



5 comments:

  1. जब कि मर चुके हैं
    उसके देह के सारे त्यौहार
    तुम्हारे बिस्तर में...मार्मिक सत्‍य और विवशता के साथ कर्तव्‍य निर्वहन की अद्भुत पंक्‍तियां पूजा जी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-12-2018) को "गिरोहबाज गिरोहबाजी" (चर्चा अंक-3175) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. अद्भुत ।
    अतुलनीय।

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  4. सही बात कही बहना। हरेक घरेलू नारी का दर्द छलका दिया। अद्भुत! !! !! !!

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